एक रात सुहानी आई थी,
खुआवों की लड़ियाँ लाई थी।
काली, पीली, पिंक, सुनहिरी,
ख़यालो में विदेशी परियां आई थी।।

बेबी-बाबू कहते-कहते,
मन ही मन मुस्काया था।
बस उनके छूने से,
बेज़ान सा अंग फड़फड़ाया था।।

मसला ऐसा खड़ा हुआ,
बेसव्र-बेधड़क बड़ा हुआ।
जिस्म में आग भड़क उठी,
प्यासी जवानी भी तड़प उठी।।

खुआवो में ऐसा खेल हुआ,
दो जिस्मों का मेल हुआ।
प्रथम मिशन से पहले,
मिशन प्रथम ही फेल हुआ।।

कल रात की यही कहानी थी,
और अपनी लाज बचानी थी।
कही किसी को न हो जाये खबर,

कल रात की गीली, सुखानी थी।।

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